Friday 6 November 2015

उत्तराखंड :भोटिया (Bhotiya/Bhutia) जनजाति


उत्तराखंड :भोटिया (Bhotiya/Bhutia) जनजाति के लोग उत्तराखण्ड के तिब्बत से लगे सीमान्त इलाकों के निवासी हैं.इनकी आबादी पारम्परिक रूप से मुख्यत:पिथौरागढ (धारचूला, मुन्स्यारी,डीडीहाट विकास खण्ड), बागेश्वर (दानपुर क्षेत्र),चमोली और उत्तरकाशी जिलों में समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई
वाले क्षेत्र में पायी जाती हैं.भोटिया लोगों की शारीरिक बनावट मंगोलियन
होती है लेकिन यह लोग तिब्बती समाज से अपने आनुवांशिक सम्बन्धों को नकारते हुए स्वयं को आर्यों के
वंशज मानते हैं.
ये लोग आज सामाजिक और आर्थिक रुप से आगे बढ़ रहे हैं। पुराने समय में भेड़-बकरियां पालने वाले ये लोग भारत-चीन के बीच नमक औऱ चावल का व्यापार करते थे। लेकिन आज अपनी मेहनत से भोटिया जनजाति के लोग और खासकर महिलायें सफलता की नई कहानी लिख रही हैं। ऐसे ही एक गांव रेणी में हम सुशीला और उसके परिवार से मिले। सुशीला और उसकी बहन पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद अपने पुश्तैनी ब्यवसाय को आगे बढ़ा रही हैं। वो उसी चरखे पर ऊन कात रही हैं जिसपर उनकी दादी और मां कातती थी। लेकिन आज जमाना बदल गया है वो पढ़ी-लिखी हैं। इसलिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर बढ़िया क्वालिटी के कालीन, कंबल और ऊन से बनने वाले दूसरे सामान बना रही हैं। ये खुद ही अपने सामान की मार्केटिंग भी करती हैं। उनकी इस पहल से परिवार आज आर्थिक और सामाजिक रूप से आगे बढ़ रहा है। लेकिन अब भी कुछ मुश्किलें हैं। भोटिया समाज के पास कोई राजनीतिक नेतृत्व नहीं है।
दरअसल ये लोग खानाबदोश सा जीवन जीते हैं। सर्दियां शुरू होने पर ये लोग अपनी भेड़-बकरियों के साथ चमोली में मांणा और आसपास की बर्फीली पहाड़ियों से उतकर तराई भाबर के मैदानों में आ जाते हैं। गर्मियां शुरू होने पर वापस पहाड़ों की ओर चले जाते हैं। खानाबदोश जीवन की कई परेशानियां भी हैं। किसी स्थायी ठिकाने और घरबार से दूर होने के कारण ये लोग अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते। यहां के लोगों में आगे बढ़ने की ललक और ज्ज़बा तो दिखाई देता है लेकिन आजादी के 60साल बाद भी राजनीतिक जागृति का अभाव है। हालांकि भोटिया जनजाति के लोगों ने समय के साथ खुद को बदल तो लिया है लेकिन उन्हें अपने लिए आज भी किसी राजनीतिक नेतृत्व की तलाश है।

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