Thursday 29 January 2015

सर्वांनी नीट वाचा आणि पहा >>> उपराष्ट्रपती हमीद अंसारी यांनी राष्ट्रध्वजाला सैलूट केला नाही म्हणून अतीहुच्चज्ञानी महानुभावांचे पोट दुखत असेल त्यांनी एकदा फ्लैग कोड ऑफ़ इंडिया नीट वाचावा .





सर्वांनी नीट वाचा आणि पहा >>>
उपराष्ट्रपती हमीद अंसारी यांनी राष्ट्रध्वजाला सैलूट केला नाही म्हणून अतीहुच्चज्ञानी महानुभावांचे पोट दुखत असेल त्यांनी एकदा फ्लैग कोड ऑफ़ इंडिया नीट वाचावा .. “ध्वजप्रणाम. एक दोन तीनकरायला ही काही संघटनेची शाखा नाहिये .. एका सार्वभौम समाजवादी सेक्युलर देशाने स्वतःचं संविधान स्विकारल्याचा हा उत्सव आहे .. फ्लैग कोड नुसार उपस्थीत असलेल्या सर्वोच्च पदास्थित व्यक्तिनेच राष्ट्रध्वजाला सैल्युट करायचा असतो.. बाकीच्यांनी फ़क्त सावधान मधे उभे राहायचे असते स्वतः हमीद अंसारी 80-85 मधे प्रोटोकॉल ऑफिसर होते तेव्हा त्यांच्याकडून असली चूक होने शक्यच नाहिये .. भारतीय सैन्यातले यु इस राठौर यांनी सुद्धा टीव्हीवर ही गोष्ट स्पष्ट केलिए .. चूक झालीय ती पर्रिकर मोदी यांच्याकडून .. प्रश्न त्यांना विचारल्या जायला हवेत अन उत्तर त्यांनी द्यायला हवीत.. पण ते नवे आहेत .. सध्याच्या प्रोटोकॉल ऑफिसर आणि एडीसी यांनी समजावून सांगितले तरी जर त्यांना समजत नसेल तरी हा त्यांचा पहिला प्रजासत्ताक दिन आहे ..



Saturday 24 January 2015

40 से 60 लीटर दूध देने वाली भारत की गीर गाय : सिर्फ 5000 गाये ही बची हैं|





आज के संदर्भ में यदि हम देखें तो भारत जैसे छोटी जोत वाले देश की खेती गोपालन एवं गो संरक्षण से ही जीवित रह सकेगी। पेट्रोलियम ऊर्जा की आसमान छूती कीमतें एवं इसके लिए अपने देश की बढ़ती परावलम्बन की स्थिति में प्रदूषण रहित एवं सस्ते वैकल्पिक ऊर्जा का स्रोत गोवंश ही हो सकता है।

अनेक कुटीर उत्पादों के रूप में गोवंश को ग्रोमोद्योग का आधार बनाया जा सकता है। आज के किसान गोआधारित कृषि, गोआधारित स्वास्थ्य, गोआधारित ऊर्जा एवं गोआधारित ग्रोमोद्योग अपना कर अपनी सभी समस्याओं का समाधान अकेले गोपालन से कर सकते हैं। लेकिन यह सब भारतीय नस्ल की गायों के द्वारा ही हो सकता है।

हमारे देश में सन 2003 की पशुगणना के अनुसार 18.7 करोड़ गोधन है। इनमें मुख्यत: 30 मान्य भारतीय नस्लें हैं, 10 से अधिक अन्य अपहचानित नस्लें हैं। उपयोगिता के आधार पर इन्हें तीन भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम है दूध देने वाली नस्लें, ये अधिक दूध देने वाली गायें है परंतु इनके बैल अच्छे भारवाही नहीं होते हैं। इनमें साहीवाल, लाल सिंधी, गीर व राठी नस्लें आती हैं। दूसरे वर्ग में भारवाही नस्लें हैं। भारत की अधिकांश देसी नस्ले इसी वर्ग में आती हैं। इनमें प्रमुख रूप से अमृतमहल, बचौर, बरगुर, डांगी, हल्लीकर, कांग्याम, केनकथा, खैरीगढ़, खिल्लारी, मालवी, नगोरी, निभारी, पवार, लाल कंधारी एवं सीरी नस्लें आती हैं। इस वर्ग की नस्लें प्राय: बैलों के लिए ही पाली जाती हैं। तीसरा वर्ग द्विकाजी नस्लों का है अर्थात् इनकी गायें अच्छा दूध देती हैं और बैल भी शक्तिशाली होते हैं। इस वर्ग में प्राय: देवनी, गावलाव, हरियाना, कांकरेज, कृष्णावैली, मेवाती, अंगोल एवं थारपारकर आदि नस्लें आती हैं।

ये सभी नस्लें भारतीय परिवेश में पली बढ़ी हैं। अत: यहां की जलवायु में सहज रूप से रहने की इनमें विलक्षण क्षमता है। असामान्य जलवायु का इनकी उत्पादन एवं कार्य क्षमता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। इनमें उत्तम रोगप्रतिरोधक क्षमता होती है अत: रोगों से आर्थिक हानि बहुत ही कम होती है।



स्वदेशी नस्ल की गायें न्यूनतम पोषण, आहार एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उपयोगी सिद्ध होती हैं। आज भारत की प्रसिद्ध 30 नस्लों में से अधिकतर समाप्ति की कगार पर हैं। सर्वश्रेष्ठ थारपारकर नस्ल को भी संकरित कर समाप्ति की ओर धकेला जा रहा है। गुजरात प्रदेश की सरकार की सराहना करनी होगी कि उसने ‘क्रासब्रीडिंग’ करने के दबाव के बावजूद भी अपने यहां की गीर नस्ल पर निरंतर कार्य किया जिसके परिणाम स्वरूप गुजरात में 25 लीटर प्रतिदिन दूध देने वाली गायें भी आज सुलभ हैं।

भारतीय गायों पर विदेशों में भी शोध कार्य चल रहा है। इजराइल ने गीर नस्ल पर कार्य करके सिद्ध किया है कि भारतीय गाय आज दूध देने की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ गाय है। हरियाणा, साहीवाल एवं गंगातीरी गायों पर विदेशों में भी कार्य हुआ है और इसके बहुत अच्छे परिणाम आए हैं। सूअर "के जीन्स वाली विदेशी जर्सी" गाय को घर घर पहुचाने वाली हमारी सरकारों ने मोती हड्डी वाली दूध की खान "गीर" गाय को क्यों नहीं घर घर पहुचाया जबकि ब्राजील की सरकार ने इन्ही गीर गायो के भरोसे पुरे ब्रजील में दूध की नदी बहा दी है. मुझे तो इसमें भी साजिस नजर आती है. जब गीर गाय की ब्रीडिंग भारत की अन्य नस्लों के साथ प्राकृतिक र्रूप से किया जा सकता है.

विदेशों में दूध एवं मांस का लक्ष्य रखकर गो संवर्धन किया जाता है जबकि भारत को दूध एवं खेती-बाड़ी के लिए बैलों की आवश्यकता है। आज भी हमारी 67 प्रतिशत खेती बैलों पर निर्भर है। निकट भविष्य में बैलों की आवश्यकता रहेगी, इसलिए हमारे गो संवर्धन का लक्ष्य सर्वांगी नस्ल तैयार करना होना चाहिए यानी की बछिया अधिक दुधारू हो और बछड़ा खेती जोत के लायक उत्तम बैल बने। किसी भी हालत में बैल शक्ति का घटना भारत के लिए अनुकूल नहीं हो सकता। समतल भूमि एवं शहरों की सड़क पर सम्भव है कि संकरित बैल काम कर सकें, परंतु गांवों में, खेती में एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में मुश्किल से ये कार्य करेंगे।

महाराष्ट्र के सतारा जिले के धोकमोंड क्षेत्र में पिछले अनेक वर्षों से अपग्रेडिंग का कार्य होता आया है और इसके बहुत अच्छे परिणाम भी आए हैं। खिलार नस्ल को थारपारकर से अपग्रेड किया गया तथा इस अपग्रेड नस्ल का नाम ‘खिलारधारी’ रखा गया। खिलार का दूध 4-5 लीटर होता है जबकि खिलारधारी में अधिकतम 14-15 लीटर तक दूध मिलता है। घृतांश का प्रतिशत भी अधिक है एवं बैल खेती के लिए उत्तम हैं। अत: जहां नस्ल सुधार की आवश्यकता हो, वहां भारतीय नस्ल से ही अपग्रेडिंग करनी चाहिए।


भारत की मान्य नस्लों की क्रासब्रीडिंग पर पूर्णतया रोक लगा देनी चाहिए। इन मान्य नस्लों में गीर, थारपारकर, कांकरेज, ओंगोल, कांगायम एवं देवनी आदि प्रमुख हैं। इसमें अधिकांश नस्लों से सेलेक्टिव ब्रीडिंग या अपग्रेडिंग के माध्यम से नस्ल सुधार किया जाना चाहिए। इससे इनके स्थाई (मूल) गुणों को आंच आए बिना दूध एवं बैल शक्ति दोनों की वृद्धि हो सकेगी। आज हमारे पास दो ढाई हजार लीटर दूध प्रति ब्यांत के साथ उत्तम बैल देने वाली गायें मौजूद हैं। इन मान्य नस्लों पर क्रासब्रीडिंग करके उनके मूल गुणों को नष्ट करना देश के लिए अत्यंत हानिप्रद होगा।

आज करोड़ों किसानों को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली गोसंवर्धन नीति में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि सर्वांगी  नस्लों जैसे कि हरियाणा, थारपारकर, गीर, कांकरेज, कांगायाम एवं देवनी आदि को सेलेक्टिव ब्रीडिंग से संवर्धित किया जाए। जो कम दूधवाली कम मान्य नस्लें हैं उनको देशी मान्य नस्लों से ही संकरित करके सर्वांगी नस्ल विकसित करनी चाहिए। इस प्रकार भारतीय नस्लों के संकरण (क्रास) को अपग्रेडिंग कहते हैं। महाराष्ट्र के सातारा जिले के धोकमोंड क्षेत्र में पिछले अनेक वर्षों से अपग्रेडिंग का कार्य होता आया है और इसके बहुत अच्छे परिणाम भी सामने आए हैं। ऐसा ही प्रयास देश में अन्य स्थानों पर भी किए जाने की आवश्यकता है।

किसानों के पास शुद्ध नस्ल की भारतीय गाएं उपलब्ध हो सकें, इसके लिए हमें पहले गौशालाओं पर ध्यान देना होगा और गौशालाओं में अच्छे नस्ल का भारतीय गोवंश तैयार हो, इसके लिए दसप (दस प्रतिशत) प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिए। इस प्रणाली के तहत गौशाला की 10 प्रतिशत सर्वोत्तम मान्य (true to breed) गऊओं को अलग बाडे में रखा जाना चाहिए, जिसे दसप बाड़ा कह सकते हैं। इस दसप बाडे में अच्छे सांड़ का प्रावधान किया जाना चाहिए ताकि आने वाली संतानें भी मान्य (true to breed) नस्ल की हों। इस बाड़े में उत्पन्न बछड़ों में से चुने गए उत्तम सांड़ ही बड़े होने पर अपनी गौशाला, समीपस्थ गांव और दूसरी गौशालाओं में वंश वृद्धि के लिए प्रयोग किए जाएं ताकि गौसंरक्षण के साथ गौसंवर्धन भी हो सके।










स्वामी 'विवेकानंद




 कलकत्त्यातील सिमलापल्ली (सिमुलिया, उत्तर कलकत्ता) येथे जानेवारी १२, १८६३, सोमवारी सकाळी :३३:३३ वा. (पौष कृष्ण सप्तमीच्या दिवशी) विवेकानंदांचा जन्म झाला.(जानेवारी १२, १८६३ हा दिवस योगा योगाने मकर संक्रती चा होता .) बाळाचे नाव नरेंद्र ठेवण्यात आले. वडील विश्वनाथ दत्त हे कलकत्ता उच्च न्यायालयात (वकील)ॅटर्नी होते. ते सामाजिक आणि धार्मिक बाबीत पुरोगामी विचाराचे आणि दयाळू स्वभावाचे होते. आई भुवनेश्वर देवी या धार्मिक वृत्तीच्या होत्या. नरेंद्रनाथाच्या विचारसरणीला आकार देण्यात त्यांच्या पालकांचा वाटा होता. नरेन्द्रनाथाला दर्शनशास्त्रे, इतिहास, समाजशास्त्रे, कला, साहित्य इत्यादी अनेक विषयांत रुची आणि गती होती. वेद, उपनिषदे, रामायण, महाभारत, भगवद्गीता आदि धार्मिक साहित्यात त्याने विशेष आवड दाखवली. त्याला शास्त्रीय संगीताची देखील जाण होती आणि त्याने बेनी गुप्ता आणि अहमद खान या उस्तादांकडून गायन आणि वादनाचे रीतसर शिक्षणही घेतले. किशोरावस्थेपासूनच तो व्यायाम, खेळ आदी उपक्रमांमध्ये सक्रिय सहभाग घेई. जुनाट अंधश्रद्धा आणि जात्याधारित भेदभाव यांच्या वैधतेसंबंधी त्याने लहान वयातच प्रश्न उपस्थित केले होते आणि सारासार विचार आणि व्यवहारी दृष्टिकोण यांचा आधार नसलेली कुठलीही गोष्ट स्वीकारण्यास नकार दिला होता. विवेकानंद मित्र परिवारात प्रिय होते, त्यांचे मित्र त्यांना बिले या नावाने हाक मारत तर त्यांचे गुरु नोरेन या शब्दाने. त्यांना वाचन, व्यायाम, कुस्ती, मुष्टियुद्ध, पोहणे, होडी वल्हवणे, घोडेस्वारी, लाठीयुद्ध, गायन आणि वादन . छंद होते.

नरेंद्ररनाथांनी आपल्या घरीच शिक्षणाची सुरुवात केली. नंतर त्यांनी १८७१ साली ईश्वरचंद्र विद्यासागर यांच्या मेट्रोपॉलिटन इन्स्टिट्यूशनमध्ये प्रवेश घेतला आणि ते १८७९ मध्ये प्रेसिडेन्सी कॉलेजची प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण झाले. काही दिवस या संस्थेत राहिल्यानंतर पुढे त्यांनी जनरल असेम्ब्लीज़ इन्स्टिट्यूशन मध्ये प्रवेश घेतला. येथे त्यांनी तर्कशास्त्र, पाश्चात्त्य तत्त्वज्ञान, आणि युरोपचा इतिहास यांचा अभ्यास केला. १८८१ साली ते फाइन आर्ट ची आणि १८८४ मध्ये बी. . ची परीक्षा उत्तीर्ण झाले.

नरेंद्रनाथांनी डेव्हिड ह्यूम, इमॅन्युएल कान्ट, गोत्तिलेब फित्शे, बारूच स्पिनोझा, जॉर्ज हेगेल, आर्थर शोपेनहायर, ऑगस्ट कोम्ट, हर्बर्ट स्पेन्सर, जॉन स्टुअर्ट मिल आणि चार्ल्स डार्विन . विचारवंतांच्या लेखनाचा अभ्यास केला होता. हर्बर्ट स्पेन्सरच्या उत्क्रांतिवादाने ते प्रभावित झाले होते. गुरुदास चटोपाध्याय या बंगाली प्रकाशकासाठी त्यांनी स्पेन्सर च्या ‘Education’ या पुस्तकाचा अनुवादही केला होता. काही काळ त्यांनी स्पेन्सर यांच्याशी संपर्कही स्थापन केला होता. पाश्चात्त्य तत्त्वज्ञानाच्या अभ्यासासोबत त्यांनी प्राचीन संस्कृत आणि बंगाली ग्रंथांचाही गाढ अभ्यास केला होता. त्यांच्या प्राध्यापकांच्या मते नरेंद्र एक प्रतिभावान विद्यार्थी होते. १८८१-८४ मध्ये ते जेथे शिकले त्या स्कॉटिश चर्च कॉलेजचे प्राचार्य डॉ. विल्यम हसी त्यांच्याबद्दल लिहितात : “नरेंद्र खरोखरच बुद्धिमान आहे. मी खूप फिरलो, जग पाहिले परंतु त्याच्यासारखी प्रतिभा आणि बुद्धिसामर्थ्य असलेला मुलगा अगदी जर्मन विद्यापीठातल्या तत्त्वज्ञानाच्या विद्यार्थ्यांमध्येही मला बघायला मिळाला नाही.” त्यांनाश्रुतिधारा’ (विलक्षण स्मरणशक्ती असलेला) म्हटले जात असे. “एवढ्या तरुण मुलाने एवढे वाचले असेल असे मला वाटले नव्हते.” असे महेंद्रलाल सरकारांनी त्यांच्याशी चर्चा केल्यावर म्हटले होते.

विवेकानंद नामकरण
राजा अजितसिंग खेत्री यांनी दि. १० मे १८९३ या दिवशी स्वामीजींना 'विवेकानंद' असे नाव दिले.

शिकागो, अमेरिका येथील सर्वधर्मपरिषद
सप्टेंबर ११, १८९३ साली अमेरिकेतील शिकागो शहरातिल शिकागो - आर्ट इन्स्टिट्युट येथे सर्वधर्मीय परिषद भरली होती.सुरुवातीस थोडे नर्व्हस असूनदेखील त्यांनी "अमेरिकेतील माझ्या बंधू आणि भगिनींनो" अशी भाषणास सुरुवात केली आणि सात सहस्र जमावाने टाळ्यांचा प्रचंड कडकडाट केला जो दोन मिनिटे अखंड चालू होता."जिने जगाला सहिष्णुता आणि वैश्विकतेचा स्वीकार करण्याची शिकवण दिली आहे, अशा सर्वात प्राचीन असणाऱ्या संन्याशांच्या वैदिक परंपरेच्या वतीने, मी जगातील नवनिर्मित राष्ट्रांचे स्वागत करतो" या शब्दात त्यांनी आपले व्याख्यान पुढे चालू केले. ह्या परिषदेत विवेकानंदांनी सनातन धर्माचे प्रतिनिधित्व करताना, वेदान्तावर भारतीय संस्कृतीवर व्याख्यान दिले. जगातील सर्व धर्मांचे सारतत्त्व एकच आहे असे प्रतिपादन त्यांनी केले. त्यांनी फारच सुंदर वक्तृत्व करून अमेरिकन नागरिकांची मने जिंकली. आपल्या अल्पशा व्याख्यानात जणू त्यांनी विश्वधर्म परिषदेचे प्राणतत्त्वच विशद केले. काही दिवसांतच आपल्या