Monday, 16 February 2015

॥॥ ॐ ॥॥



॥॥ ॐ ॥॥
यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे
अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।
तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में
सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई
देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं,
वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और
आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम
दिया ओम।
जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास
सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस
ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में
होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह
परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने
का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।
*त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक :
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन
तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा,
विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और
स्वर्ग लोग का प्रतीक है।
*बीमारी दूर भगाएँ :
तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में
अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के
तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट्
आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं।
सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और
फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव
होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और
हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन
ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर
भगाया जा सकता है।
*उच्चारण की विधि :
प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार
ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन,
सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10,
21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं,
धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।
*इसके लाभ :
इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी।
दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक
बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है।
इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने
वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में
पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।
*शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव :
प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और
वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के
आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने
वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ
आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे
रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और
मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह
आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।

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