क्या आप जानते हैं कि अपने सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने नोबेल प्राइज़ के लिए अपने नाम का एक नहीं, दो नहीं, पूरे 26 बार नोमिनेशन कराया था। 16 बार साहित्य के लिए और 10 बार शांति के लिए। यानी वे एक साथ साहित्य, शिक्षा और शांति तीनों कर रहे थे। बहरहाल, नोबेल कमेटी ने भी ज़िद ठान ली थी, नहीं देंगे जी। अगली बार आना। आख़िर तक नहीं दिया।
उन्हें काक चेष्टा, बको ध्यानम यानी लगन के लिए नोबेल का सांत्वना पुरस्कार दिया जाना उचित होता।
ज़िंदगी में एक स्कूल, कॉलेज नहीं खोला, शिक्षा के लिए एक भी काम नहीं किया, लेकिन अपने प्रति इंसान का मोह देखिए। राष्ट्रपति बनते ही उसी साल से अपने बर्थ डे को शिक्षक दिवस बनवा दिया। वह भी तब जबकि भारत के पहले गर्ल्स स्कूल की संस्थापिका के रूप में सावित्रीबाई फुले की जयंती 3 जनवरी शिक्षक दिवस के लिए सबसे सही दिन होता।
देखिए नोबेल कमेटी की ऑफीशियल साइट में राधाकृष्णन जी।http://www.nobelprize.org/nominati…/archive/show_people.php…
http://www.nobelprize.org/nomination/archive/show_people.php?id=7525
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