Thursday, 5 March 2015

शतपथ ब्राह्मण मेंयाज्ञवल्क्य एक जगह जवाब देते हैं- ‘मगर मैं मांस खा लेता हूं, अगर मुलायम होतो।’

अल बिरूनी ने यह तो साफ कर ही दिया है कि उस काल में पुरोहित वर्ग घोड़ेका मांस खाते थे। संतों में मांसाहार की परंपरा बाद में भी जारी रही है। यहां तककि आधुनिक काल के सर्वाधिक विद्वान व प्रभावशाली हिंदू संन्यासी स्वामीविवेकानंद भी मांस खाते थे। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि उनकेअंतिम आहार में मछली भी शामिल थी। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा माईएक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ में एक जगह स्वीकार किया है कि मांस खाना चाहिए।वहां ऐसा प्रतीत होता है कि गांधी अगर अपनी मां से किये गये वादे से बंधे न होतेतो निश्चित ही वे भी मांसाहार करते। गांधी अपने एक मित्र से कहते हैं, ‘मैंस्वीकार करता हूं कि मांस खाना चाहिए, पर मैं अपनी प्रतिज्ञा का बंधन नहीं तोड़सकता।’

शतपथ ब्राह्मण मेंयाज्ञवल्क्य एक जगह जवाब देते हैं- ‘मगर मैं मांस खा लेता हूं, अगर मुलायम होतो।’ आपस्तंब धर्मसूत्र के अनुसार, ‘ गाय और बैल पवित्र हैं, इसलिए खाये जानेचाहिए।’ ऋग्वेद में इंद्र का कथन है, ‘‘ वे मेरे लिए 15 बैल पकाते हैं, जिनका मैंवसा खाता हूं। इस खाने से मेरा पेट भर जाता है।’’ मनु के अनुसार, ‘‘पंचनखियोंमें सेह, साही, शल्लक, गोह, गैंडा, कछुआ, खरहा तथा एक और दांत में पशुओं मेंउूंट को छोड़कर बकरे आदि पशु भक्ष्य हैं।’’ इन कथनों के अलावा और भी ढेरोंश्लोकों का उदाहरण देकर अंबेदकर ने साबित किया है कि हिंदुओं के धर्मग्रंथ भीउनके मांसाहारी होने का समर्थन करते हैं।

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